सोरायसिस, मुँहांसे व अन्य चर्म रोग - कारण एवं उपचार
Psoriasis, Acne and other Skin diseases - Causes and Treatment
SKIN DISEASES - ACNE, PSORIASIS, ECZEMA, VITILIGO |
त्वचा शरीर का सबसे बड़ा अंग होती है तथा बाहरी वातावरण के सीधे संपर्क में होती है अतः अनेक कारणों से त्वचा में अनेक तरह के विकार उत्पन्न होते हैं। त्वचा के किसी भाग की असामान्य स्थित को चर्म रोग (Dermatosis) कहते है।
विभिन्न चर्म रोगों के लक्षण व गम्भीरता भिन्न होती है, ये स्थायी अथवा अस्थाई हो सकते हैं, दर्द रहित अथवा दर्दयुक्त , परिस्थितिजन्य अथवा आनुवांशिक, अहानिकर अथवा जानलेवा भी हो सकते हैं।
हालांकि सैकड़ों तरह के चर्म रोग पाए जाते हैं, मगर कुछ मुख्य-मुख्य प्रकार यहाँ आपकी जानकारी के लिए प्रस्तुत है।
1. सोरायसिस / विवर्चिका / छाल रोग / अपरस (Psoriasis)
यह एक असंक्रामक (non infectious), दीर्घकालिक (chronic), स्व-प्रतिरक्षी चर्म विकार (auto-immune skin disorder) होता है जिसमें त्वचा पर लाल, खुरदरे चकते, धब्बे, फफोले आदि होते रहते हैं तथा आधुनिक चिकित्सा पद्धति में इसका संपूर्ण ईलाज न होने की वजह से मरीज मानसिक रूप से हमेशा अत्यंत परेशान रहता है।
सोरायसिस के लक्षण, प्रकार व कारण :-
सोरायसिस के लक्षण -
त्वचा पर लाल खुरदरे चकते या धब्बे, खुजलीदायक या खुजलीरहित, छाल जैसी सख्त व मोटी परतमय पपड़ीदार या फफोलेदार चमड़ी, त्वचा की परतों का गिरते रहना या चिटकना आदि सोरायसिस के मुख्य लक्षण होते हैं।
सामान्यतया ये लक्षण कोहनियाँ, घुटने, पीठ या खोपड़ी की चमड़ी में प्रकट होते हैं, हालांकि अन्य जगहों पर भी हो सकते हैं।
सोरायसिस के कारण :-
यह एक ऑटो ईम्यून रोग है अर्थात प्रतिरक्ष तंत्र अधिक सक्रिय होकर शरीर की स्वयं की कोशिकाओं के प्रति कार्यवाही करने लगता है।
ऐसा क्यों होता है यह अभी तक अज्ञात है।
स्वत: ठीक होकर पुन: हो जाती है।
सोरायसिस के प्रकार :-
- Plaque Psoriasis or Psoriasis vulgaris - सबसे ज्यादा होने वाली सोरायसिस है। इसमें त्वचा पर मोटे लाल चकते/धब्बे जिन पर चाँदी जैसी या सफेद छाल वाली परते / पपड़ी बन जाती है। ये धब्बे 1-10 सेमी या और बड़े हो सकते हैं जो कि मुख्यतः कोहनियों, घुटनों, निचली पीठ व खोपड़ी की त्वचा में पाए जाते है।
- Guttate Psoriasis - दूसरी ज्यादा होने वाली सोरायसिस, बचपन व युवावस्था में सामान्यत: मिलती है। इसमें त्वचा पर लाल, छोटे व एक दूसरे से अलग बूंद आकार के धब्बे पाए जाते हैं। धड़, हाथ-पाँव, चेहरे, खोपड़ी की त्वचा प्रभावित होती है।
- Inverse / Flexural Psoriasis - लाल, चिकने व चमकदार चकते/धब्बे जो कि मुख्यतः ढीली त्वचा जैसे कांख/बगल, जांघों के भीतरी भाग में , छाती के नीचे होते हैं।
- Pustular Psoriasis - ये तेजी से होने वाली व गम्भीर सोरायसिस है। इसमें हाथों - पाँवों पर सफेद फुन्सियाँ जो कि लाल त्वचा से घिरी होती है बन जाती है, कभी - कभी ये फुन्सियाँ आपस में मिल जाती है।साथ ही बुखार, ठण्ड आदि फ्लू जैसे लक्षण भी प्रकट हो सकते हैं।
- Erythrodermic / Exfoliative Psoriasis - बहुत कम होने वाली परन्तु गम्भीर अवस्था होती है।बड़े पैमाने पर लाल, छाल जैसी त्वचा जो कि जली हुई प्रतीत होती है। शीघ्र उपचार करवाना आवश्यक होता है।
- Psoriatic Arthritis (PsA) - सोरायसिस के साथ साथ जोड़ों में दर्द (गठिया), काफी दर्दनाक स्थिति होती है।
- Nail Psoriasis- नाखूनों में खड्डे या दरारें पड़ना, रंग सफेद होना या बदलना, ढीला पड़ना, घिसना, उखड़ना, नीचे की त्वचा मोटी होना, नीचे रंगीन बिन्दू या धब्बे बनना, नाखून गिर जाना आदि।
- Scalp Psoriasis - बालों में रूसी, खुजली व दर्द।
सोरायसिस का उपचार व नियंत्रण
सोरायसिस का एलोपैथिक उपचार -
आधुनिक चिकित्सा पद्धति द्वारा सोरायसिस के लक्षणों को कम तो किया जा सकता है परन्तु पूर्णतः ठीक नहीं किया जा सकता।
- त्वचा पर बनी पपड़ियों को हटाने के लिए, त्वचा को नम रखने के लिये व जलन/खुजली को कम करने के लिए मल्हम का प्रयोग किया जाता है जैसे कॉर्टीसोल क्रीम, विटामिन डी क्रीम, कोल-तार (अलकतरा) मल्हम एवं पेट्रोलियम जेली व कई अन्य मॉईश्चराईजर क्रीम।
- दवाइयां जैसे विटामिन ए व्युत्पन्न - Tazarotene आदि।
- अल्ट्रा वॉयलेट प्रकाश थैरेपी ( U.V. light rays)।
सोरायसिस नियंत्रण व परहेज -
- तनाव कम करने के लिए ध्यान (meditation), योग, प्राणायाम आदि करें।
- धूम्रपान व मदिरा सेवन से बचें।
- आरामदायक वस्त्र पहनें।
- स्वास्थ्य-वर्धक भोजन करें। प्रोसेस्ड मीट, डिब्बाबंद भोजन व पेय पदार्थों का सेवन न करें।
- त्वचा को शुष्क व खुरदरी होने से बचाएं।
सोरायसिस का सफल आयुर्वेदिक इलाज -
आयुर्वेद में सोरायसिस को ठीक करने व पुन: प्रकट नहीं होने देने की क्षमता होती है।
- आयुर्वेदिक एंटीऑक्सीडेंट्स - प्रतिरक्षा तंत्र को सुचारू करते है।
- आयुर्वेदिक रक्त शोधक - त्वचा को शक्ति प्रदान करते हैं।
- आयुर्वेदिक मल्हम (मंजिष्ठा,साल, घृतकुमारी, करंज, दारूल, हल्दी आदि) व मॉईश्चराईजर जैसे एलोवेरा - त्वचा पर बने चकते, धब्बे, पपड़ी, फफोले, फुन्सी को नियंत्रित कर त्वचा को पुन: सामान्य बनाते हैं।
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2. मुँहांसे (Acne Vulgaris)
आमतौर पर चेहरे, गर्दन, कंधे, छाती व ऊपरी पीठ पर पाई जाने वाली लाल, नर्म व छोटी फुन्सियाँ जिनके सिरों पर मवाद हो, मुँहांसे Acne कहलाते है।
मुँहांसे प्राय: युवावस्था (14 - 30 वर्ष के बीच) में होते है, हालांकि किसी भी उम्र में हो सकते है।
मुँहांसे स्वतः ठीक हो सकते हैं मगर सही इलाज नहीं किया जाए तो गहरे निशान, दाग - धब्बे छोड़ देते है तथा त्वचा भी गहरे रंग की हो सकती है।
मुँहांसे क्यों होते हैं / कारण (Causes of Acne)
त्वचा की सतह पर छोटे छोटे छिद्र होते हैं जो कि सतह के नीचे पाई जाने वाली वसा / तेल ग्रन्थियों (sebacious glands) से जुड़े हुए होते हैं।
ये वसा ग्रन्थियां एक तेलीय द्रव्य (Sebum) का निर्माण करती है। सामान्य तौर पर मृत त्वचा कोशिकाओं को त्वचा से बाहर निकालने का कार्य इस तेलीय द्रव्य द्वारा किया जाता है।
जब कभी यह तेलीय द्रव्य अधिक बनता है तो मृत कोशिकाओं व मृत बैक्टीरिया के साथ त्वचा के छिद्रों को बंद / जाम कर देता है जिससे त्वचा पर उभरी हुई संरचनाएं दिखती है जिन्हें मुँहांसे कहते हैं।
इस तेलीय द्रव्य Sebum के अधिक उत्पादन के निम्न कारण हो सकते हैं :-
- हार्मोनल बदलाव (युवावस्था में)।
- पाचन तंत्र की परेशानी / कब्ज।
- खानपान - अधिक घी, तेल, पास्ता, सफेद चावल, सफेद ब्रैड, चीनी, चॉकलेट आदि उच्च glycemic पदार्थ के सेवन से इंसुलिन की मात्रा बढ़ जाती है जो कि वसा ग्रन्थियों से अधिक तेलीय द्रव्य उत्पादन के लिए जिम्मेदार होता है।
- नींद की कमी व तनाव।
- अधिक चिकनाई वाली क्रीम, लोशन आदि कॉस्मेटिक्स के अधिक प्रयोग से।
मुँहांसों के प्रकार (Types of Acne)
(अ). अदाहक मुँहांसे (Non-inflammatory Acne) -
सूजन, दर्द व जलन नहीं होती।
- काली कील (Black Heads / open comodones) - छिद्र सिबम व मृत कोशिकाओं से भरे होते हैं मगर बाहरी किनारे (सिर) खुले रहते है जो कि सतह से देखने पर काले सूक्ष्म बिन्दु जैसे प्रतीत होते हैं।
- सफेद कील (White Heads / closed comodones) - छिद्र सिबम व मृत कोशिकाओं से भरे होते हैं तथा बाहरी किनारे बंद रहते हैं जो कि सतह से देखने पर छोटे सफेद कठोर उभार जैसे दिखते हैं।
(ब). दाहक मुँहांसे ( Inflammatory Acne) -
सूजन, दर्द / खुजली, जलन होती है।
- फुन्सी (Pimples) - लाल, सुजन व दर्दयुक्त | छिद्र सिबम, मृत कोशिकाओं व बैक्टीरिया से भरे रहते हैं।
- पिटिका (Papules) - छिद्र भरे होते है तथा छिद्र की दीवार टूटकर कठोर हो जाती हैं, चारों ओर की त्वचा गुलाबी हो जाती है, छूने की/ खुजलाने की आदत पड़ जाती है।
- दानेदार मुँहांसे (Pustules) - छिद्र दीवार टूटने के बाद मवाद भर जाती है, मुँहांसे लाल रंग के होते है तथा बाहरी सिरा पीला या सफेद दिखता है।
- गाँठदार मुँहांसे (Nodules) - छिद्र भरे हुए, सुजन युक्त, खुजलाने पर और बड़े व त्वचा के नीचे तक गहरे चले जाते है |
- पुटीदार मुँहांसे (Cysts) - सबसे बड़े मुँहांसे, निशान छोड़ते हैं, बड़े उभार, लाल या सफेद, छूने पर दर्द, त्वचा में और गहरे तक होते हैं।
मुँहांसों का उपचार ( Treatment of Acne)
मुँहांसे बिना किसी उपचार के स्वतः गायब हो जाते हैं, परन्तु मुँहांसों की वजह से भावनात्मक दबाव पैदा हो सकता है, साथ ही मुँहांसे निशान छोड़ते हैं जो कि कभी कभी आजीवन रह सकते हैं, अत: इनका उचित उपचार आवश्यक हो जाता है।
मुँहांसों के उन्मूलन के लिए तीन तरह के उपचार प्रचलन में है :-
(A). कोई उपचार नहीं (No Treatment) यानि केवल संयमित जीवनशैली से मुँहांसों का नियंत्रण / बचाव (Lifestyle Remedies) -
- दिन में 2- 3 बार गुनगुने पानी या औषधीय साबुन से चेहरा हल्के हाथों से धोएं, ज्यादा रगड़े नहीं।
- सुगंधित लोशन या तेलीय सौंदर्य-प्रसाधन जैसे त्वचा को उत्तेजित करने वाले उत्पाद प्रयोग न करें। ऐसे मॉईश्चराईजर व सनस्क्रीन क्रीम प्रयोग करें जिन पर लिखा हो - NONCOMEDOGENIC यानि त्वचा के छिद्र बंद नहीं करने वाले / बिना चिकनाई वाले।
- मुँह / चेहरे को नौंचे नहीं।
- पुरुष, युवा लड़के नियमित दाढ़ी (shaving) करें, सिर के बाल छोटे रखें।
- तकिया कवर रोजाना या कम से कम साप्ताहिक अवश्य बदलें।
- भरपूर नींद लें, तनाव मुक्त रहें। सुबह की सैर, व्यायाम, योग व ध्यान करें।
- खूब पानी पीएं - 10 से 12 गिलास रोज।
- तेल, घी, नमक मसाले आदि उच्च glycemic खाद्य पदार्थ कम खाएं।
- Low glycemic खाद्य पदार्थ अधिक खाएं जैसे - जटिल कार्बोहाईड्रेट, साबुत अनाज, दालें, ताजा फल व सब्जियां - संतरा, नींबू, गाजर, खुमानी (apricot) व अन्य सुखे मेवे, शकरकंद, पालक व हरी पत्तेदार सब्जियां, टमाटर, ब्ल्यू बैरी, ब्राउन राइस, ब्राउन ब्रेड, किण्वा, कद्दू बीज, बीन्स, मटर, मसूर, मछली - सालमोन, मैकरेल, फैटी फिश, टर्की माँस, जिंक, विटामिन ए, विटामिन ई , ओमेगा-3-फैटी एसिड, एंटीऑक्सीडेंट्स।
(B). उपचार
(i). OTC - Over The Counter बिना चिकित्सकीय परामर्श के :-
अक्सर कुछ लोग लोशन, जैल, क्रीम, मल्हम आदि बिना चिकित्सक के परामर्श के दुकान से खरीदकर चेहरे पर लगा लेते हैं।
इनमें अधिकांशत: सैलिसिलिक अम्ल, बेन्जॉयल पेरॉक्साइड, ट्रेटीनॉइन, क्लींडामाइसिन आदि दवाइयां होती है।
इन्हे सुबह व रात को सोने से पहले चेहरा धोने के बाद हल्के हाथ से (पतली परत) लगाए।
(ii). चिकित्सकीय परामर्श - औषधियां व शल्य चिकित्सा।
औषधियां-
- एंटीबायोटिक गोलियां जैसे टेट्रासाइक्लीन आदि।
- औरतों में हार्मोन नियंत्रण हेतु बर्थ कंट्रोल पिल्स (परन्तु गर्भावस्था में नहीं)।
- आइसोट्रेटीनॉइड (विटामिन ए का व्युत्पन्न एक रेटिनॉइड) गोलियां जो कि गांठदार या पुटीदार मुँहांसों हेतु दी जाती है परन्तु इसके साइड इफेक्ट बहुत ज्यादा होते हैं इसलिए हर किसी को नहीं दी जा सकती।
शल्य चिकित्सा-
- पुटीदार मुँहांसों (cysts) पर चीरा लगाकर मवाद बाहर निकालना या पूरे मुँहांसे को ही बाहर निकालना या इसमें एंटीबायोटिक व स्टीरॉइड इंजेक्शन लगाना।
- लेजर थैरेपी।
- माइक्रोडर्माब्रैजन व केमिकल पील्स - त्वचा की परत को छील कर उतारना।
(C). घरेलू व आयुर्वेदिक उपचार -
घरेलू नुस्खे -
- कच्चा दूध व नींबू रस मिलाकर रूई से साफ करें।
- मुल्तानी मिट्टी, नींबू रस, टमाटर रस, चंदन पाउडर, गुलाब जल का पेस्ट बना कर लेप करें।
- मसूर दाल पाउडर, हल्दी, नींबू रस, दही का लेप लगाएं।
- तुलसी पत्ती पाउडर, नीम पत्ती पाउडर, हल्दी, मुल्तानी मिट्टी का लेप लगाएं।
- हल्दी, शहद, गुलाब जल का लेप कर सकते हैं।
आयुर्वेदिक इलाज -
- आयुर्वेद में मुँहांसे बनने के कारण पर नियंत्रण किया जाता है।
- आयुर्वेदिक औषधियां तेलीय द्रव्य (सिबम) उत्पादन में वृद्धि करने वाले कारक को आंतों से अवशोषित होने से रोकती है, अत: इनके 2-3 महीने लगातार प्रयोग से प्राकृतिक रूप से बिना किसी दुष्प्रभाव के मुँहांसों का नियंत्रण किया जा सकता है।
- मंजिष्ठा, हरिद्रा, पिप्पली, निंबा, बिभीतकी, घृतकुमारी आदि जड़ी-बूटियाँ रक्त-शोधन व त्वचा को चमकदार बनाने का कार्य करती हैं।
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(3). त्वचा-शोथ / छाजन ( Dermatitis)
त्वचा का लाल, जलनयुक्त, खुजलीदार होना व त्वचा की एकाधिक परतों में जलन करने वाले घाव होना, छाले होना त्वचा-शोथ (Dermatitis) कहलाता है।
त्वचा-शोथ के लक्षण व प्रकार (Symptoms and Types of Dermatitis) -
- Atopic Dermatitis / Eczema -
सबसे ज्यादा होने वाला, दीर्घकालीन व एलर्जी से होने वाला चर्म शोथ रोग है, जिसमें त्वचा खुजलीदार, जलनयुक्त, प्राय: लाल चकतेमय हो जाती है। Dry Eczema में त्वचा सुखी रहती है जबकि Moist Eczema में नम या तेलीय रहती है।- Contact Dermatitis -
दाहक / ज्वलनशील / उत्तेजक पदार्थों के त्वचा के संपर्क में आने से त्वचा का जल जाना, लाल होना , छाले होना व खुजली आना आदि।- Dyshidrotic Dermatitis -
अधिकांशत: महिलाओं में; अंगुलियों, हथेलियों, तलवों की चमड़ी पर खुजली, पपड़ीदार चकते, त्वचा लाल, फटी हुई व दर्दमय।- Nummular Dermatitis -
अधिकांशत: पुरूषों में; सर्दी के मौसम में टांगों की चमड़ी पर सुखे, गोल चकते।- Seborrheic Dermatitis -
खोपड़ी, भौंहों, पलकों, नाक, कान के पीछे की चमड़ी पर लाल, खुजलीदार व पपड़ीदार चकते, तेलीय स्त्राव व रुसी/ डेन्ड्रफ। शिशुओं में cradle cap कहलाती है।➤➤ Eczema Guide - Click Here.
त्वचा-शोथ के कारण ( Causes of Dermatitis) -
- आनुवंशिकता।
- मौसम - ठण्ड।
- भौतिक - एक्स-रे, UV किरणें।
- रासायनिक - मस्टर्ड गैस, DDT आदि।
- संक्रमण - जीवाणु, कवक।
- जहर - ब्रोमाइड, संखिया, पारा, स्वर्ण आदि।
- आंतरिक बीमारी - गठिया, मधुमेह आदि।
(4). दाद या दद्रु ( Ring Worm / Dermatophytosis / Tinea) -
संक्रामक रोग जिसमें त्वचा पर खुजलीदार, सिक्के जैसे गोल परतदार चकते हो जाते हैं जिनके किनारे उभरे हुए जबकि बीच में से दबे हुए होते हैं| त्वचा के साथ साथ बाल व नाखून भी प्रभावित हो सकते हैं।
पांवों की चमड़ी पर दाद होने को "एथलीट फुट" कहते हैं।
दाद का कारण -
तीन तरह की कवक (fungus) - Trichophyton, Microsporum व Epidermophyton में से कोई एक का संक्रमण।
दाद की जांच -
Black light lamp test.
Lab test - KOH test.
Skin biopsy.
Fungal culture.
दाद का उपचार
- त्वचा पर लगाने हेतु एंटीफंगल क्रीम, लोशन, जैल अथवा स्प्रै।
- एंटीफंगल दवा की गोलियां - Griseofulvin, terbinafin, clotrimazole, miconazole, fluconazole, ketoconazole etc.
- बिस्तर, कपड़े धोएं, शरीर सुखा रखें।
घरेलू उपचार -
- एपल सिडार सिरका - दिन में तीन बार लगाएं।
- नारियल तेल - एक से तीन बार।
- हल्दी लेप।
- Oregano तेल, Lemongrass तेल, Tea Tree तेल तीनों को नारियल तेल या ऑलिव आयल में मिलाकर लगाएं।
आयुर्वेदिक उपचार -
आयुर्वेदिक मल्हम व रक्त शोधक दवा।
(5). खाज / खुजली रोग / Scabies -
Scabies एक संक्रामक रोग है जिसमें त्वचा पर अत्यधिक खुजली होती है, जो कि एक आठ पैर वाले अति सूक्ष्म बाह्य परजीवी Sarcoptes scabiei ( Mites) से होता है।
अत्यधिक खुजली के साथ त्वचा पर छोटे, लाल दाने, फफोले अथवा ददोरे बन जाते है। खुजली रात के समय अधिक होती है| एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में तेजी से फैलती है।
उपचार हेतु चिकित्सक द्वारा त्वचा पर लगाने के लिए क्रीम, लोशन (जैसे Permethrin lotion आदि) एवं गोलियां (Ivermectin) लिखी जाती है।
इनके अलावा स्टीरॉइड दवाएं, एंटीहिस्टामिनिक दवाएं आदि भी खुजली कम करने के लिए दी जा सकती है।
संक्रमण रोकने हेतु घर के सारे बिस्तर, पर्दे, सोफा कवर आदि खौलते गर्म पानी से धोकर धूप में सुखाएं, अंत:वस्त्र सहित अन्य कपड़े भी गर्म पानी से धोकर धूप में सुखाएं एवं प्रेस (इस्त्री) करके पहने।
(6). सफेद दाग (Vitiligo - विरंजकता) -
यह एक AUTOIMMUNE रोग है जिसमें त्वचा को रंग प्रदान करने वाली कोशिकाएं (मेलेनोसाइट्स - मेलेनिन नामक पिगमेंट बनाती है) स्वतः नष्ट होने से त्वचा रंगहीन / सफेद हो जाती है।
- इसे ल्यूकोडर्मा /अवरंजकता - hypopigmentation / रंजकहीनता आदि नामों से भी जाना जाता है।
- विश्व में 1 - 2% , भारत में 4 - 5%, राजस्थान व गुजरात में 6 - 8% जनसंख्या इससे प्रभावित है।
- शरीर के किसी भी भाग की त्वचा, बाल सफेद या ग्रे हो सकते हैं।
- संक्रामक नहीं है अर्थात् छूने से या एक से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलती है।
- शरीर के एक ही ओर कुछ जगह पर छोटे दाग हो सकते हैं या दोनों ओर बड़े दाग भी हो सकते हैं।
- त्वचा जलने के बाद भी प्राय: रंजकहीन / सफेद हो जाती है।
- यह बीमारी ज्यादा तकलीफदेह नहीं होती, हालांकि कुछ लोगों में धूप से एलर्जी, खुजली आदि हो सकती है, परन्तु भावनात्मक प्रभाव डालती है जो कि तनाव, अवसाद का कारण हो सकता है।
- उपचार - स्वतः सही हो सकती है परन्तु अधिकांश लोगों में आजीवन रहती है। आयुर्वेदिक उपचार से सफलता मिल सकती है।
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(7). फोड़े (Boils) व नासूर या बालतोड़ (Carbuncle / Staph Skin Infection)
फोड़ा लाल, दर्दनाक व परेशान करने वाला चमड़ी पर निकला उभार होता है जो कि तरल पदार्थ व मवाद (pus) से भरा होता है।
कई फोड़े जब एक गुच्छे में बनते हैं तो उसे नासूर (carbuncle) या बालतोड़ कहते हैं। यह अत्यंत दर्दनाक होता है, निशान छोड़ता है।
इनकी वजह से बुखार, बदन दर्द व थकान भी हो सकती है।
मसूर के दाने से बेर जितने आकार के हो सकते है।
शुरू में खुजली होती है, उभार बड़ा व दर्दनाक होता जाता है तथा मवाद भरती है, मुँह फटने पर मवाद बाहर निकलती रहती है।
कारण -
त्वचा के बाल की जड़ (hair follicle) में बैक्टीरिया Staphylococcus aureous का संक्रमण।
प्राय: शरीर के नमी वाले भाग - गर्दन के पीछे, कंधे, जांघें, काँख, नितंब, चेहरे आदि जहाँ पसीना व घर्षण हो सकते हैं, पर बनते हैं।
पीड़ित व्यक्ति से संपर्क, अस्वस्थता, डायबिटीज, गुर्दा रोग, कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र, लीवर रोग, त्वचा के कटना / फटना, बाल टूटना आदि अन्य कारक होते हैं।
उपचार -
बिना उपचार भी ठीक हो सकते हैं।
एंटीबायोटिक दवाएं व मल्हम, दर्द निवारक दवाएं व एंटीसेप्टिक ड्रेसिंग तथा छोटी शल्य क्रिया से ठीक हो जाते हैं।
उचित स्वच्छता, एंटीसेप्टिक साबुन के प्रयोग से बचाव किया जा सकता है।
आयुर्वेद -
फोड़े व नासूर के आसान व शीघ्र उपचार हेतु श्रेष्ठ आयुर्वेदिक मल्हम के लिए सम्पर्क करें। इस मल्हम के निम्न फायदे हैं -
- फोड़े की शुरूआती अवस्था में लगा देने पर फोड़ा वहीं रूक जाता है।
- फोड़ा हो गया है लेकिन पूरा पका नहीं है अर्थात् फूटने लायक नहीं हुआ है तो यह मल्हम फोड़े को जल्दी पका देता है।
- फोड़ा पक कर फूट गया है तो यह मल्हम घाव को जल्दी भरने में सहायता करता है व पुन: होने से बचाता है।
- यह मल्हम घाव से रक्त बहाव रोकने, दर्द व सूजन कम करने के साथ साथ एंटीबायोटिक का काम भी करता है।
- घाव, कटी-फटी चमड़ी को सही करने के साथ साथ जली हुई चमड़ी को भी सही करता है तथा जलने से बनने वाले निशान/ चिन्ह भी नहीं होने देता है।
- मधुमेह/डायबिटिक रोगियों के घाव व नासूर भी बहुत जल्दी सही करता है।
- मुँहांसे व चेहरे की छाया में भी लाभदायक है।
अर्थात् यह ALL IN ONE मल्हम है।
(8). झाई / चेहरे के धब्बे / छाया ( Melasma)
चेहरे की त्वचा पर, मुख्यतः गाल, माथा, नाक, ठोड़ी पर एवं कभी कभी गर्दन, छाती, बाजुओं पर भूरे, गहरे रंग के धब्बे होना झाई या छाया (सुरमा त्वचा रोग, Melasma, Chloasma, Hyperpigmentation आदि) बोला जाता है।
- महिलाओं में पुरूषों की तुलना में अधिक होते हैं। गर्भावस्था, गहरे रंग की त्वचा, अधिक धूप आदि कारण हो सकते है।
- स्वतः सही नहीं हो तो उपचार से ठीक हो सकते हैं, अन्यथा उम्र भर रह सकते हैं।
- एलोपैथी में त्वचा पर लगाने की क्रीम, गोलियां व सर्जरी से इलाज संभव है, मगर साईड इफेक्ट ज्यादा होते हैं।
- आयुर्वेद में रक्त शोधक दवा, मल्हम व फेयरनेस क्रीम के उपयोग से बिना किसी साईड इफेक्ट के इन्हें ठीक किया जा सकता है।
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