मधुमेह क्या है? जीवन को मधुमेह से मुक्त कैसे करें? Towards Diabetes Free Life

 मधुमेह से मुक्त जिन्दगी की ओर  

Towards Diabetes Free Life

मधुमेह क्या है? शायद आप इससे अच्छी तरह परिचित हैं 

इस लेख में मधुमेह की विस्तृत जानकारी के साथ-साथ "जीवन को मधुमेह से मुक्त कैसे करें?", की जानकारी भी दी गई है, आशा है आपको फायदा अवश्य होगा


Diabetes - Types, Causes, Symptoms, Diagnosis & Control
मधुमेह - प्रकार, कारण, लक्षण, पहचान व उपचार



मधुमेह शरीर की वह अवस्था होती है जिसमें समुचित उपयोग न होने की वजह से रक्त में मौजूद शर्करा (Glucose या Sugar) की मात्रा असामान्य रूप से बढ जाती है तथा परिणामस्वरूप शरीर में कई स्वास्थ्य समस्याएं अथवा रोग उत्पन्न हो जाते है

इसे चिकित्सा विज्ञान में डायबिटिज मेलाईटस कहते है तथा साधारणतया डायबिटिज शब्द का प्रयोग ही किया जाता है सामान्य बोलचाल में लोग इसे शुगर नाम से समझते है

विश्व में सर्वाधिक मधुमेह रोगी भारत (Diabetes Capital) में है, लगभग हर चौथे व्यक्ति को यह समस्या है

पहले 40 वर्ष की उम्र के बाद होती थी, आजकल किसी भी उम्र में हो सकती है, जन्म से भी

पुरूषों की तुलना में महिलाओं में अधिक पाई जाती है

शाकाहारी व्यक्तियों में मधुमेह मांसाहारी व्यक्तियों की तुलना में कम होती है

2017 में भारत में 31 अरब रुपये डायबिटीज से सम्बंधित उपचार व नियंत्रण में खर्च हुए थे

WHO के अनुसार लगभग 16 लाख लोग प्रति वर्ष डायबिटीज की वजह से काल कवलित हो जाते है

वर्तमान में विश्व में लगभग 43 करोड़ व्यक्ति डायबिटीज से पीड़ित हैं

एक अध्ययन के अनुसार 2025 में 7 करोड़, 2030 में 8 करोड़, एवं 2045 में 14 करोड़ भारतीय डायबिटीज से पीड़ित होंगें

TABLE OF CONTENTS

डायबिटिज के प्रकार
मधुमेह बनने की प्रक्रिया
मधुमेह के लक्षण
मधुमेह होने के कारण
मधुमेह की पहचान
मधुमेह का नियंत्रण व बचाव

डायबिटिज के प्रकार:- 

चिकित्सा विज्ञान में डायबिटिज दो तरह की होती है -

A. डायबिटिज इन्सीपिडस (DI-Diabetes insipidus):- 

इस बीमारी में बार बार प्यास लगती है तथा अत्यधिक पेशाब आता है, यह एक हार्मोन वेसोप्रेसीन (ADH) की कमी से होती है तथा इसमें रक्त में शर्करा का स्तर सामान्य रहता है यह बहुत कम देखने को मिलती है तथा इसका उपचार संभव है


B. डायबिटिज मेलाईटस (DM):-  

इसमें रक्त की शर्करा बढ जाती है, यही मधुमेह होती है, केवल डायबिटिज के नाम से इसका ही संबोधन किया जाता है, यह लेख भी इसी के बारे में है। (Diabetes - excess urine, Mellitus - honey)

यह तीन प्रकार की होती है :-

1. गैस्टेशनल:- 

यह महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान होती है, तथा प्रसव के बाद स्वत: ठीक हो जाती है हालांकि कुछ महिलाओं में बाद में टाईप-2 होने का खतरा रहता है

2.  Type-1 या IDDM (Insulin Dependant Diabetes Mellitus):- 

इसमें शरीर में इन्सुलिन नामक हार्मोन नहीं बनता है, अधिकतर बच्चों में होती है, जन्म से भी हो सकती है, कभी कभी बड़े व्यक्तियों में भी हो जाती है कुल डायबिटिज का 5% से भी कम होती है शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाने पर वायरस या बैक्टीरिया के इन्फेक्शन की वजह से अग्नाशय की बीटा कोशिकाएं समाप्त हो जाती है तथा इन्सुलिन बनना बन्द हो जाता है चिकित्सा विज्ञान में इसके नियंत्रण हेतु बाहरी इन्सुलिन के इन्जेक्शन हमेशा लगाये जाते है

3.  Type -2 या NIDDM (Non Insulin Dependant Diabetes Mellitus):- 

यह कुल डायबिटीज का 95% से अधिक होती है, मुख्यतः व्यस्कों में होती है, मोटे लोगों में ज्यादा होती है,  इसमें या तो इन्सुलिन कम बनता है या फिर अक्रिय हो जाता है


शरीर में मधुमेह बनने की प्रक्रिया (Pathophysiology of Diabetes):-

इसे समझने से पहले शरीर की सामान्य प्रक्रिया को समझते है -
  • शरीर के किसी भी भाग में कोई भी कार्य जिस स्थान पर होता है उसे कोशिका कहते हैं; जैसे देखने का कार्य आँख की कोशिकाएं, मूत्र निर्माण व उत्सर्जन का कार्य किडनी की कोशिकाएं करती है, आदि मानव शरीर में लगभग 70 लाख कोशिकाएं होती है इन सभी कोशिकाओं को अपना अपना काम करने के लिए ऊर्जा की आवशयकता होती है जिसके लिए कोशिका के अन्दर आक्सीजन व ग्लूकोज का होना जरूरी होता है।
  • फेफडो़ से आक्सीजन व आंतों से ग्लूकोज को रक्त द्वारा प्रत्येक कोशिका तक पंहुचाया जाता है ग्लूकोज को रक्त से कोशिका के अन्दर जाने के लिए इन्सुलिन नामक हार्मोन की सहायता लेनी पड़ती है।
  • इन्सुलिन अग्नाशय (pancreas) की बीटा -2 कोशिकाओं द्वारा बनाया जाता है तथा रक्त द्वारा ही कोशिकाओं तक पंहुचाया जाता है।
  • भोजन में लिए गये कार्बोहाईड्रेट जैसे गेहूं, बाजरा, मक्का, ज्वार, जौ, चावल, आलू आदि पचने के बाद ग्लूकोज / शर्करा (sugar) में बदल जाते हैं जो कि आंतों से रक्त में चला जाता है अत: खाना खाने के बाद रक्त में ग्लूकोज की मात्रा एक बार बढ जाती है तथा कोशिकाओं तक वितरण के बाद वापिस सामान्य हो जाती है।
इस प्रकार शरीर के लिए ग्लूकोज या शुगर का होना बहुत जरूरी है, जबकि कुछ लोग शुगर के नाम से ही डर जाते हैं समस्या शुगर से नहीं बल्कि रक्त में शुगर की मात्रा असामान्य रूप से बढ जाने पर होती है

अब समझते हैं मधुमेह कैसे होती है?

जब अग्नाशय की बीटा कोशिकाएं किसी भी कारण से नष्ट हो जाती है तो इन्सुलिन बनना बंद हो जाता है (टाईप 1), या इन कोशिकाओं द्वारा इन्सुलिन कम बनाया जाता है अथवा इन्सुलिन की क्रियाशीलता कम हो जाती है (टाईप 2) तो ग्लूकोज रक्त से कोशिका के अन्दर नहीं जा पाता है एवं रक्त में ग्लूकोज की मात्रा असामान्य रूप से बढ जाती है

उधर कोशिका के अन्दर ग्लूकोज नहीं आने से उसे ऊर्जा नहीं मिल पाती एवं उस अंग की कार्यक्षमता प्रभावित होने पर बीमारियां शुरू हो जाती है

मधुमेह के लक्षण (Symptoms of Diabetes):-

  • रक्त में शुगर के बढने से पतली रक्त नलिकाओं की दीवारों को नुकसान पंहुचता है मुख्यतः हाथ व पांव की अंगुलियों के किनारे, जहां तंत्रिकाएं काम नहीं कर पाती व चुभन या सनसनाहट महसूस होती है (न्यूरोपैथी)
  • पाचन तंत्र की तंत्रिकाओं के कार्य न करने से उबाक आना, उल्टी, दस्त या कब्ज होना
  • पुरूषों के जननांग में शिथीलता (ED)। महिलाओं में योनि संक्रमण
  • गुर्दे की कोशिकाएं प्रभावित होने पर गुर्दे फेल हो जाते हैं (नेफ्रोपैथी)। पेशाब में शुगर ज्यादा निकलने व बार बार पेशाब आने से शरीर में पानी की कमी होना व अधिक प्यास लगना, शरीर पतला पड़ना
  • मस्तिष्क प्रभावित होने पर याददाश्त में कमी (अल़जाईमर), सिर दर्द, डिप्रैशन , चिड़चिड़ाहट आदि
  • हृदय प्रभावित होने पर धड़कन बढना, अनियमित ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल व हृदयाघात हो सकता है
  • आँखों में रेटिना प्रभावित होने पर (रेटिनोपैथी) कम दिखना, अँधापन, मोतियाबिंद, ग्लूकोमा आदि
  • त्वचा में बैक्टिरियल, वायरल, फंगल इन्फेक्शन बढ जाते है, प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होने से घाव ठीक नहीं होते हैं
  • कानों से कम सुनाई देता है
  • मांसपेशियों में कमजोरी व थकान, जोडों में दर्द
  • अधिक भूख लगना
  • थाईरॉइड ग्रंथि के स्त्राव कम या ज्यादा होना व वजन बढना

इस प्रकार जिस अंग या तंत्र की कोशिकाएं प्रभावित होती है, उस से संबधित बीमारियां होती है तथा अलग अलग व्यक्तियों में अलग अलग लक्षण दिखाई देते हैं

मधुमेह होने के कारण (Etiology - Causes of Diabetes):- 

1. आनुवंशिकता (Heredity)

2. शारीरिक श्रम व सक्रियता व निद्रा की कमी (Loss in physical activity) से इन्सुलिन बनने में व क्रियाशीलता में कमी होती है

 3. मानसिक तनाव व दबाव (Tension and Stress) :- इनके लगातार रहने से शरीर में टॉक्सिन पैदा होते हैं जो बीटा कोशिकाओं को नुकसान पंहुचाते है

 4. अनियमित खानपान व पोषक तत्वों की कमी :- पिछले कुछ वर्षों से डायबिटीज में अचानक वृद्धि का ये एक मुख्य कारण है रासायनिक खाद व पैस्टीसाईड के अत्यधिक उपयोग से जमीन के लाभदायक सूक्ष्म जीव (microorganisms) मर रहे हैं खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की कमी आ रही है फूड पैकेजिंग से भी पोषक तत्व कम हो जाते है आजकल लगभग सभी नमकीन, भुजिया, चिप्स आदि पाम आयल या कॉटन सीड आयल में बनाये जाते हैं जो कि बीटा कोशिकाओं का बहुत अधिक नुकसान करते हैं

5. प्रदूषित हवा तथा रासायनिक पैस्टीसाईड के शरीर में जाने से भी टॉक्सिन का स्तर बढता है तथा इन्सुलिन निर्माण में कमी आती है

मधुमेह की पहचान (Diagnosis / Tests of Diabetes):-

1. लक्षण से

2. मूत्र परीक्षण

3. रक्त परीक्षण:-

(a). Blood Sugar tests - Fasting, Random, PP, OGTT आदि रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बताते हैं ये डायबिटीज का संकेत देते हैं

(b). HbA1C :- रक्त में ग्लूकोज हिमोग्लोबिन (Hb) से चिपक कर विचरण करता है, इस टैस्ट में यह देखा जाता है कि एक  Hb के साथ कितने ग्लूकोज चिपके हुए है, उनका 3 महिने का औसत निकाला जाता है, क्योंकि RBC (जिनमें Hb होता है) की आयु 90 - 120 दिन होती है अत: 3 -3 महिने के अंतराल से ही यह टैस्ट किया जाना चाहिए यही डायबिटीज जांचने का सबसे भरोसेमंद टैस्ट है इसका स्तर 6.2 से ज्यादा होने पर डायबिटीज के नियंत्रण के लिए ध्यान देना आवश्यक होता है

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मधुमेह का नियंत्रण व बचाव (Diabetes - Control and Prevention):- 

मधुमेह के नियंत्रण व बचाव के लिए संयमित जीवनशैली व खानपान, नियमित व्यायाम व शारीरिक श्रम के साथ ऐसी औषधियों की आवश्यकता होती है जो अग्नाशय की बीटा कोशिकाओं का नवनिर्माण कर सके जिससे प्राकृतिक रूप से इन्सुलिन शरीर में उपलब्ध रहे

(1). मधुमेह नियंत्रण हेतु औषधियां:- 

आइये पहले यह जानते हैं कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में कैसे उपचार किया जाता है और वो कितना प्रभावी होता है

एलोपैथी -

एलोपैथी में निम्न में से एक या अधिक दवाई दी जाती है - Metformin, glyburide, glipizide, glimepiride, repaglinide, nateglimide, rosiglitazone, pioglitazone, sitagliptin, sexagliptin, linagliptin, canagliflozin,dapagliflozine, empagliflozin  etc, तथा बाहरी इन्सुलिन

इनका काम करने का तरीका (mode of action) इस प्रकार से हो सकता है -

  • आंतों से ग्लूकोज का रक्त में अवशोषण कम करके रक्त में शुगर की मात्रा बढने नहीं देना
  • किडनी द्वारा मूत्र में ग्लूकोज का उत्सर्जन बढा कर रक्त में शुगर की मात्रा कम करना
  • पाचन की क्रिया को धीरे करके ग्लूकोज का स्तर कम करना
  • अग्नाशय की बीटा कोशिकाओं को उत्तेजित करके उनसे ज्यादा इन्सुलिन बनवाना
  • शरीर की कोशिकाओं की इन्सुलिन के प्रति सक्रियता बढाना
  • लीवर में ग्लूकोज के निर्माण को कम करना

इस प्रकार ये दवाइयां रक्त में शुगर की मात्रा को तो नियंत्रित कर लेती है मगर नई बीटा कोशिकाओं का निर्माण नहीं कर पाती, फलस्वरूप शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा हेतु पर्याप्त ग्लूकोज नहीं मिल पाता है तथा डायबिटीज कभी समाप्त नहीं होती है व दिनों दिन स्वास्थ्य और ज्यादा बिगड़ता जाता है

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ये दवाइयां समस्या को छुपाती है, हल नहीं करती (Instead solving, these medicines HIDE the problem) 

अधिकतर दवाइयां (Oral Hypoglycemic Agents) रक्त में शुगर की मात्रा को कम करने के लिए ग्लूकोज को फैट में बदल देती है, यही कारण है कि डायबिटीज के रोगी जो एलोपेथिक दवाइयां ले रहे होते हैं उनके शरीर का वजन और ज्यादा बढ़ता जाता है

साथ ही इन दवाइयों के निम्न दुष्प्रभाव भी सेहत को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं :-

  • जी मचलना, दस्त, ब्लड शुगर मात्रा सामान्य से कम हो जाना, वजन बढना या कम होना, खून की कमी होना, जोडो़ का दर्द, अग्नाशय का सूजना, योनि व मूत्र तंत्र में संक्रमण होना, ब्लड प्रेशर कम होना, हृदयघात आदि
  • बाहरी इन्सुलिन के इंजेक्शन से एक बार तो स्थिति सामान्य हो जाती है लेकिन लम्बे समय तक प्रयोग से ब्लड शर्करा कम हो जाती है व अग्नाशय में कैंसर के अलावा ब्रैस्ट, कोलोरेक्टल, प्रोस्टेट आदि कैंसर हो सकते हैं

आयुर्वेदिक औषधियां -

आयुर्वेदिक औषधियों में अग्नाशय की बीटा कोशिकाओं के नवनिर्माण की क्षमता होती है जिससे धीरे धीरे प्राकृतिक इन्सुलिन बनना शुरू हो जाता है, रक्त व कोशिकाओं में शुगर मात्रा सुचारू हो जाती है, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार हो जाता है तथा शरीर में किसी तरह का दुष्प्रभाव भी नही होता है नीम, करेला, गुड़मार, दालचिनी, पालक, कत्था सुपारी, लहसुन आदि मधुमेह के उपचार में सक्षम हैं इनके प्रयोग से न केवल मधुमेह को मात दी जा सकती है बल्कि स्वस्थ व्यक्ति भी बीमार होने से बच सकता है

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(2). जीवन शैली में बदलाव:-

1. नियंत्रित खानपान:-
  • कार्बोहायड्रेट युक्त भोजन में कमी करते हुए प्रोटीन युक्त भोजन की मात्रा बढ़ाएं
  • अंकुरित अनाज खाएं
  • भोजन से पहले कम से कम एक तिहाई सलाद व फल लें
  • नारियल पानी, बादाम, अखरोट का सेवन करें
  • दूध, चाय, मिठाई नहीं ले
  • रिफाइंड तेल, चीनी, पाम तेल, पैकेज्ड खाद्य पदार्थ जैसे सॉस, जैम, ज्यूस आदि, बिस्कुट, ब्रेड, पिज्जा, बर्गर, कोल्ड ड्रिंक्स आदि से बचें
  • एल्युमिनियम के बर्तन काम में न लें
2. कम से कम 7 घंटे रात की गहरी नींद ले, जल्दी सोयें व जल्दी उठें
3. शारीरिक श्रम धीरे धीरे बढाते हुए जितना अधिकतम कर सकें करें
4. डायबिटीज नियंत्रण हेतु हमारा अगला लेख - "4 तरीके डायबिटीज को हराने के" पढें

नोट :- कृपया हमसे संपर्क करने से पहले यहाँ क्लिक करके DISCLAIMER अवश्य पढें

आयुर्वेद एवं मधुमेह 

आयुर्वेद में डायबिटीज मेलाईटस को बहुमुत्रल (Polyuria) रोगों में शामिल किया गया है

मधुमेह (Honey urine) की पहचान भारतीय आयुर्वेद चिकित्सकों को प्राचीन काल से ही थी। 

शुश्रुत संहिता के अनुसार अधिक व गाढे मूत्र की स्थिति को प्रमेह, जबकि शर्करा युक्त मूत्र (Glycosuria) की स्थिति को मधुमेह कहा गया है

आयुर्वेद के अनुसार पतले व्यक्तियों में मधुमेह आनुवंशिक कारणों से जबकि मोटापे के साथ मधुमेह खराब जीवनशैली की वजह से होती है

जब ब्लड ग्लूकोज स्तर 160-180 mg/dl हो जाता है तो शर्करा मूत्र के साथ बाहर निकलनी शुरू हो जाती है

आयुर्वेद के अनुसार मधुमेह त्रिदोषों में असंतुलन के कारण होती है, कफ प्रधान मधुमेह (insulin resistance) का नियंत्रण आसानी से हो सकता है, पित्त प्रधान मधुमेह (insulin deficiency) को भी नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन वात प्रधान मधुमेह (insulin dependency) का नियंत्रण नहीं किया जा सकता है। 

आयुर्वेद के अनुसार मधुमेह के कारण - आनुवंशिकता
जीवनशैली - लम्बे समय तक बैठे रहना, अधिक सोना, दही, दूध, नए अनाज, मांसाहार, व गुड से बना भोजन
लक्षण - पसीना, शरीर में दुर्गन्ध, शिथिलता, लम्बे समय तक लेटे रहने या बैठे रहने की ईच्छा होना, गला व तालू शुष्क होना, जीभ पर पपड़ी, मुंह में मिठास अनुभव होना, शरीर में भारीपन, बाल व नाखून बढ़ना, ठंडी जगह रहने की ईच्छा होना, हाथ-पांव में जलन, मूत्र में जलन होना आदि 

लघु व संतर्पण भोजन (पचने में आसान, शीघ्र अवशोषण) - हाई कैलोरी 
गुरु व संतर्पण भोजन (पचने में मुश्किल, धीमा अवशोषण) - हाई कैलोरी 
लघु व अपतर्पण भोजन (पचने में आसान, शीघ्र अवशोषण) - लो कैलोरी 
गुरु व अपतर्पण भोजन (पचने में मुश्किल, धीमा अवशोषण) - लो कैलोरी 

संशोधना samshodhana - purification
सम्समाना samsamana - balancing
ब्रम्हणा brmhana - nourishing
रसायन rasayana - rejuvenative

herbs - Gymnema sylvestre, Coccinia indica, fenugreek (Trigonella foenum-graecum), Eugenia jambolana.

उर्हरी

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