क्या आप अपने दिल से प्यार करते हैं?
Do You Love Your Heart?
अपनी माँ की कोख से बाहर आने से लेकर इस दुनिया को छोड़ने तक कोई अंग आपके शरीर के लिए लगातार बिना रुके कार्य करता रहता है तो वो है आपका दिल।
आपका दिल ताउम्र आपके शरीर का ख्याल रखता है लेकिन आप इससे प्यार करते हैं या नहीं।
हर प्राणी जिसने इस दुनिया में जन्म लिया है उसे ये दुनिया छोड़नी पड़ती है यह शाश्वत सत्य है, मगर असमय मृत्यु का कारण कुछ दशकों पहले तक मुख्यतः संक्रामक रोग होते थे जैसे मलेरिया, हैजा, प्लेग, टीबी आदि।
विज्ञान एवं चिकित्सा के क्षेत्र में निरन्तर प्रगति ने इन रोगों से होने वाली मृत्यु को काफी हद तक सीमित कर दिया है व मनुष्यों की औसत आयु में वृद्धि हुई है।
पिछले कुछ दशकों से समय पूर्व मौत के मुख्य कारणों में दिल का दौरा ( Heart attack), कैन्सर व दुर्घटनाएं शामिल है जो कि बदली हुई जीवन शैली का परिणाम है।
पहले 50 वर्ष की उम्र के पश्चात दिल का दौरा पड़ता था तथा पहला अटैक, दूसरा अटैक, तीसरा अटैक आदि सुनने में आते थे।
आजकल 16-17 साल की युवावस्था में भी हर्ट अटैक देखने को मिल रहे हैं तथा बिना किसी पूर्व लक्षण के या तो आदमी मृत पाया जाता है या फिर अस्पताल में उपचार शुरू होने से पहले ही मर जाता है, बहुत कम मामलों में ही बचाव हो पाता है।
चूंकि यह बीमारी इलाज़ व बचने का मौका बहुत कम देती है अत: दिल की सार सम्भाल सही तरीके से समय रहते कर ली जाए तो इसे होने से रोका जा सकता है।
अब आप बताईये करेंगें अपने दिल से प्यार, इसकी देखभाल ? ..... यह लेख उन सभी के लिए है जो हृदय या संबंधित किसी बीमारी से ग्रसित हैं या जो इससे बचाव का रास्ता जानना चाहते हैं।
आप अपने दिल को कितना जानते हैं?
इस लेख में आपको निम्न विषयों के बारे में जानकारी मिलेगी :-
- हृदय की संरचना व कार्यिकी।
- दिल का दौरा कैसे व क्यों पड़ता है?
- हृदयाघात के लक्षण।
- प्राथमिक उपचार।
- उपचार व बचाव, (एलोपैथी v/s आयुर्वेद)।
- रक्त चाप (BP)।
- वसा व कोलेस्ट्रॉल।
1. हृदय की संरचना व सामान्य कार्यिकी (Anatomy and Routine physiology of Heart)
- हृदय छाती में मध्य से थोड़ा बांयी तरफ स्थित बंद मुट्ठी के आकार का एक मजबूत व मांसल अंग होता है।यह चार भागों में विभक्त होता है - दो उपरी दाएं व बाएं आलिंद (right and Left atrium/ auricle) व दो निचले दाएं व बाएं निलय (right and Left ventricle), इनमें चार वाल्व या दरवाजे होते हैं।
- पूरे शरीर से अशुद्ध रुधिर (कार्बन डाई-ऑक्साइड युक्त) शिराओं द्वारा दाएं आलिंद में आता है, यहाँ से त्रिपर्दी/त्रिमुंही (tricuspid) वाल्व से होते हुए दाएं निलय में पंहुचता है। दाएँ निलय का रक्त फुफ्फुसीय (pulmonary) वाल्व से होते हुए एक धमनी द्वारा फेफड़ों में जाता है तथा फेफड़ों से शुद्ध (आक्सीजन युक्त) रुधिर एक शिरा द्वारा बाएं आलिंद में आता है, यहाँ से द्विपर्दी/द्विमुंही (biscuspid or mitral) वाल्व से होते हुए बाएं निलय में पंहुचता है। बाएं निलय से महाधमनी (aortic) वाल्व पार करते हुए शुद्ध रुधिर महाधमनी व अन्य धमनियों द्वारा पूरे शरीर की कोशिकाओं तक भेजा जाता है।
- इस प्रकार हृदय रक्त नलिकाओं (धमनी व शिरा) तथा वाल्वों की सहायता से शरीर में रुधिर के प्रवाह को नियंत्रित करता है। धमनी (artery) रक्त को हृदय से कोशिकाओं तक ले जाने का व शिरा (vein) कोशिकाओं से रक्त वापस हृदय में लाने का कार्य करती हैं। धमनियों की दीवार मोटी, मजबूत व लचीली होती है तथा शिराओं के भीतर थोडी थोडी दूरी पर वाल्व होते हैं। हृदय व शिराओं के वाल्व मिलकर रुधिर के प्रवाह को एक दिशा में रखने का कार्य करते हैं ताकि रक्त उल्टा न बहे।
- स्वयं हृदय की कोशिकाओं के लिए रक्त पंहुचाने का कार्य कोरोनरी धमनियों द्वारा किया जाता है।
- रक्त के साथ आक्सीजन, पानी, ग्लूकोज, अन्य पोषक तत्व, कार्बन डाई-आक्साइड, दवाइयां, अन्य पदार्थ शरीर में विचरण करते हैं। एक व्यस्क व्यक्ति के बदन में लगभग 5 लीटर खून होता है।
- हृदय, रक्त व रक्त नलिकाओं की सम्मिलित व्यवस्था को रक्त परिसंचरण तंत्र (circulatory system) कहते हैं।
- जब आलिंद व निलय फैलते हैं (Diastole) तो रक्त शरीर से हृदय में प्रवेश करता है तथा जब दोनों संकुचित होते हैं (systole) तब खून को हृदय से बाहर पंप किया जाता है। ये दोनों क्रियाएं एक के बाद एक लयताल से होती है जिसे धड़कन (heart beat) कहा जाता है, इस दौरान संबंधित वाल्व बंद होने पर क्रमशः लब-डब की आवाज सुनाई देती है।
- व्यस्क हृदय एक मिनट में औसतन 72 बार व एक दिन में लगभग एक लाख बार धड़कता है। इस तरह प्रतिदिन 19000 लीटर रक्त हृदय द्वारा पंप किया जाता है। ये सभी कार्य अनवरत रूप से आजीवन होते हैं, अत: दिल हमारे शरीर का एक बहुत ही महत्वपूर्ण व शक्तिशाली अंग (vital organ) होता है।
2. दिल का दौरा कैसे व क्यों पड़ता है? (Pathophysiology and causes of Heart attack)
- प्रतिदिन हजारों लीटर लहु को सही समय, सही लय, मात्रा, दबाव से बिना रूके, बिना किसी त्रुटि के पूरे शरीर में पंप करने के लिए दिल की मजबूत माँसपेशियों की कोशिकाओं को अतिरिक्त ऊर्जा की लगातार आवश्यकता रहती है। यह ऊर्जा कोरोनरी धमनियों द्वारा पंहुचाए गए रक्त में घुले आक्सीजन, ग्लूकोज व अन्य पोषक तत्वों से मिलती है।
- अब यदि किसी भी कारण से इनमें से किन्हीं कोशिकाओं को रक्त की आपूर्ति कम हो जाए या रक्त में उपलब्ध आक्सीजन, ग्लूकोज या अन्य पोषक तत्व पर्याप्त न हो या रक्त में कोई नुकसान दायक तत्व हो, तो उन कोशिकाओं का कार्य प्रभावित होता है व अन्ततः मर जाती है (Myocardial Infarction)। हृदय का कार्य रूक जाने से असहनीय दर्द होता है, कुछ लोगों की तुरन्त मृत्यु हो जाती है, कुछ की थोड़े समय बाद, कुछ लोग उपचार के बाद बच जाते हैं, कभी कभी बिना किसी दर्द के शांत दौरा पड़ता है व व्यक्ति मृत मिलता है।
- यानि कि कारण कोई भी हो दिल की कोशिकाओं के मरने से दौरा पड़ता है तथा इसकी तीव्रता इस बात पर निर्भर करती है कि कौनसी धमनी, रक्त आपूर्ति में कितनी कमी व कौनसी माँसपेशी प्रभावित हुई है।
दिल का दौरा पड़ने के विभिन्न कारण -
मुख्य कारण जीवनशैली में बदलाव होना है फिर भी निम्न संभावित कारण हो सकते हैं :-
- धमनियों का संकरा होना व उच्च रक्त चाप (high B.P.) :- अधिक वसा व कोलेस्ट्रॉल का धमनी की दीवार में जमा होने से इस दीवार की मोटाई बढ जाती है तथा इसका लचीलापन कम हो जाता है जिससे भीतर से धमनी संकरी हो जाती है प्रवाहित रक्त की मात्रा कम होने लगती है जिसे संतुलित करने के लिए रक्त चाप बढ जाता है व हृदय को ज्यादा काम करना पड़ता है ताकि अधिक रक्त प्रवाहित कर सके, इस वजह से स्वयं हृदय को वांछित रक्त नहीं मिल पाता है।
- धमनियों में रक्त का थक्का (थ्रोम्बोसिस) जमने से रक्त संचरण अवरोधित हो जाता है।
- मोटापा:- अधिक खुराक व परिश्रम की कमी से आजकल मोटापे की समस्या बहुत तेजी से बढ रही है, यह कई रोगों की जड़ है। धमनियों में वसा का जमना व बीपी बढना, अतिरिक्त रुधिर आपूर्ति हेतु हृदय पर दबाव व मधुमेह आदि वजहों से यह दिल के दौरे के लिए जिम्मेदार होता है।
- कभी कभी अचानक खुशी, दु:ख, उत्तेजना, गुस्सा या डर की वजह से सदमा / मानसिक आघात (mental stroke) हो जाता है फलस्वरूप धमनियां तेजी से संकुचित होने से रक्त संचरण रूक जाता है।
- भावनात्मक तनाव, ठण्डा मौसम, ऊँचाई, अत्यधिक परिश्रम के समय बदन को ज्यादा खून चाहिए, हृदय तेज कार्य करके उपलब्ध करवाता है मगर स्वयं की कोशिकाओं को नहीं दे पाता।
- आनुवंशिकता यानि पारिवारिक इतिहास।
- मधुमेह / डायबिटीज की वजह से दिल की कोशिकाओं द्वारा ग्लूकोज का उचित उपयोग न कर पाना। अत: मधुमेह होने के सभी कारण यहाँ भी लागू होते हैं।
- धूम्रपान व तम्बाकू के सेवन से कार्बन मोनो आक्साइड के रक्त में बढने से आक्सीजन आपूर्ति कम हो जाती है। इसके अलावा धमनियां संकरी होने व रक्त चाप बढने से भी हृदय को नुकसान पंहुचता है।
- मदिरा का अधिक सेवन व नशीली ड्रग्स हृदय कोशिकाओं के लिए नुकसानदेह होते है।
- गुर्दों की खराबी:- पेट में अपच व कब्ज की वजह से भोजन के पचने के बजाय सड़ने से रक्त में यूरिक एसिड बढ जाता है जो कि गुर्दों को नुकसान पंहुचाता है फलस्वरूप प्रोटीन व अन्य तत्व तथा विषैले पदार्थ पेशाब मे छन नहीं पाते हैं तथा हृदय में पंहुच कर रक्त को गाढ़ा कर देते हैं व कोशिकाओं का नुकसान करते हैं, उसके अलावा पैरों, आँखों के नीचे, पेट में पानी के जमाव का कारण भी बनते हैं। गुर्दे अन्य कारण जैसे मदिरा से भी खराब हो सकते हैं।
अचानक घातक दौरा क्यों पड़ता है?
30+ उम्र के बाद जब धमनियों की दीवारों में वसा, कोलेस्ट्रॉल की परतें जमने लगती है व धमनियां संकरी होती जाती है, तथा 80 - 90% तक संकरी होने के बावजूद रक्त प्रवाह बंद नहीं होता है, हाँ बीपी बढा हुआ होता है मगर लक्षण पता नहीं चलते हैं। ऐसी स्थिति के बाद जब 100% ब्लोकेज हो जाता है, मुख्यतः कोरोनरी धमनियों में तो अचानक हृदय कार्य करना बंद कर देता है जो कि जानलेवा साबित हो जाता है।
3. हृदयाघात के लक्षण (Symptoms of heart attack)
- कुछ मामलों में बिना किसी लक्षण के अचानक शांत मौत (silent attack)।
- सीने में तेज चुभने वाला दर्द ( हृत्शूल), कधों में दर्द मुख्यतया बांये कंधे में, दर्द नाभी से जबड़ों के बीच कहीं भी महसूस हो सकता है।
- पेट में जलन, जी घबराना, उल्टी आना।
- पीठ में तेज दर्द।
- साँसे तेज तेज चलना, धड़कने बढ जाना।
- शरीर पसीने पसीने हो जाना।
4. दिल का दौरा पड़ने पर क्या करें / प्राथमिक उपचार (First aid)
- लक्षण महसूस होने पर तुरन्त लेट जाएं, दोनों पैर ऊँचाई पर रखें, माहौल को शांत बनाएं, ठीक से धीरे व लम्बी साँस लें, एक कप पानी के साथ एस्पीरीन की गोली लें या नाइट्रोग्लीस्रीन की गोली जीभ के नीचे रखें, अथवा नीचे बताई गई तीन में से किसी एक पैथी का उपाय अपनाएं। आक्सीजन सिलेण्डर की व्यवस्था हो तो मास्क पहनाएं। अगर नाड़ी कम चल रही है तो कृत्रिम हृदय-क्रिया करें व कृत्रिम श्वांस दें।
- आपात समय में क्या उपाय करें - इन नेचुरोपैथी, होम्योपैथी या एलोपैथी उपायों में से किसी एक को चुनें| नेचुरोपैथी - एक मिनट तक साबुत लाल मिर्च चबाएं या एक चम्मच मिर्च पाउडर गर्म पानी के साथ लें| होम्योपैथी - Aconite 200 की एक बूंद जीभ पर डालें, 5-7 मिनट बाद एक बूंद और डालें, फिर से 5-7 मिनट बाद एक बूंद डालें, कुल तीन बार | एलोपैथी - विशेषज्ञों के अनुसार Aspirin 325 mg एक गोली, Clopidogrel 75 mg दो गोली व Atorvastatin 80 mg एक गोली तुरंत लें|
- शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल या हृदय विशेषज्ञ के पास ले जाएं एवं वहाँ पंहुचने से पहले फोन द्वारा सुचित कर दें ताकि वे तैयार मिलें| अस्पताल में चिकित्सक को उनके विवेकानुसार जाँच व उपचार करने दें तथा शांति बनाए रखें।
5. हृदयघात - उपचार व बचाव (Heart Attack - Treatment and Prevention)
आयुर्वेद में दिल संबंधित बीमारियों के उपचार एवं बचाव दोनों की क्षमता होती है।
आईये पहले ये जानते हैं कि एलोपैथी में कैसे उपचार किया जाता है - अस्पताल में आते ही सबसे पहले जीवन रक्षक दवाइयों व अन्य विधियों से मरीज को जिन्दा रखने का प्रयास किया जाता है तथा आवश्यक जाँचें की जाती है। स्थिति में सुधार होने पर निम्न उपचार किए जाते हैं :-
- खून पतला करने व थक्का जमने से रोकने वाली दवाइयां दी जाती है ताकि खून के बहाव में अवरोध न आए व गति बनी रहे। कुछ समय बाद इनका असर कम होने लग जाता है साथ ही लम्बे समय तक उपयोग से कई दुष्प्रभाव (side effects) जन्म ले लेते हैं।
- फिर धमनी में स्टेंट लगाया जाता है (एंजियोप्लास्टी), इसके द्वारा संकरी धमनी को अंदर से चौड़ा किया जाता है, ताकि खून का प्रवाह सुचारू रहे। यह व्यवस्था भी कुछ समय बाद गड़बड़ा जाती है क्योंकि स्टेंट के आसपास भी रक्त का थक्का जम सकता है।
- तत्पश्चात बाई-पास सर्जरी की जाती है जिसमें अवरोधित (blocked) या क्षतिग्रस्त धमनी के साथ दूसरी धमनी का टुकड़ा काटकर जोड़ा जाता है। कुछ समय पश्चात इसमें भी रूकावट आ सकती है, तब फिर एक बार बाई-पास सर्जरी की जाती है।
इस तरह हमने देखा कि एलोपैथी से एक बार जीवन तो बच सकता है मगर स्थाई हल नहीं मिल पाता। अगर आप ताउम्र दवाई लेने के शौकीन हैं तो केवल एलोपैथी लेतें रहे अन्यथा इन दवाइयों के साइड इफेक्ट, जाँचों व उपचार का अत्यधिक खर्चा, शारीरिक व मानसिक पीड़ा आदि कई कारणों से परेशान लोगों को असरकारी, सस्ता, सरल व सुरक्षित तरीका आयुर्वेद में ही मिल सकता है।
आयुर्वेद दो तरह से कार्य करता है -
- अस्वस्थ को स्वस्थ बना कर, व
- स्वस्थ को स्वस्थ बनाये रख कर।
अस्वस्थ को स्वस्थ बनाने के लिये स्वस्थ जीवनशैली के साथ अर्जुन, नागकेशर, दालचीनी, पुष्कर-मूल, जटामासी, गुग्गुलु, शिलाजीत, जायफल, हल्दी, तेजपत्ता, मैथी, मुनक्का, शतावरी, गिलोय या गुड़ुची, लौंग, पीपली, केशर, सौंठ-अदरक, मिर्च, लहसुन, सैंधा नमक आदि का प्रयोग औषधियों के रुप में किया जाता है।
इनके उपयोग से धमनियों के अवरोध (blockage) प्राकृतिक रुप से खुल जाते हैं, बीपी व कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण में रहते है, हृदय की माँस- पेशियां सुचारू रक्त मिलने से बेहतर कार्य करती है।
आयुर्वेदिक औषधियों का उपयोग अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद शुरू कर देना चाहिए तथा एलोपैथिक दवाई भी लेते रहें, बस दोनों में आधा घंटा अंतराल होना जरूरी है।
दो से तीन माह बाद सभी जाँच सामान्य होने पर एलोपैथिक दवाई चिकित्सक से सलाह लेकर बंद कर दें, मगर आयुर्वेदिक औषधियां तीन माह और जारी रखें।
अब आप स्वस्थ हैं।
स्वस्थ व्यक्ति अपने दिल की हिफाज़त कैसे करे:-
आजकल दिल का दौरा अधिकतर अचानक ही आता है एवं सम्भलने का मौका बहुत कम मिलता है, अल्पायु में भी देखा जा रहा है ऐसे में दिल को तरोताजा रखने के लिए निम्न युक्तियां अपनाएं - नियमित जाँच, औषधियों का उपयोग व स्वस्थ जीवनशैली।
(अ). नियमित स्वास्थ्य जाँच :- बीपी, डायबिटिज व लिपिड प्रोफ़ाइल टैस्ट निश्चित अंतराल पर करवातें रहें ताकि समय रहते दिल की सूचना मिल जाए। आयु वर्ग के अनुसार जाँच अंतराल निम्नानुसार रहना चाहिए -
- 20+ के लिए वर्ष में 1 बार।
- 30+ के लिए वर्ष में 2 बार।
- 40+ के लिए वर्ष में 3 बार।
- 50+ के लिए वर्ष में 4 बार।
- 60+ के लिए वर्ष में 6 बार।
लिपिड प्रोफ़ाइल टैस्ट द्वारा रक्त में कोलेस्ट्रॉल (टोटल, HDL व LDL), व ट्राईग्लीसराईड की मात्रा को नापा जाता है।
LDL व ट्राईग्लीसराईड का तय मानकों से अधिक व HDL का कम होना स्वास्थ्य के लिए सही नहीं होता है।
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(ब). औषधियां (Preventive medication or Prophylaxis):-
- उपरोक्त जाँच सामान्य आने पर स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं।
- जाँच में मामूली गड़बड़ी आने पर या 30+ उम्र के बाद दिल की बीमारियो की रोकथाम हेतु एक माह औषधियां प्रयोग करें, 6 माह के अंतराल से पुनः प्रयोग करें अर्थात् हर वर्ष हृदय की दो बार सर्विस करवाएं।
- अधिक खराबी पता चलने पर तीन से छः माह लगातार औषधियों का सेवन करें। तत्पश्चात 6 माह के अंतराल से एक माह तक हर वर्ष सेवन नियमित करते रहें।
आयुर्वेदिक औषधियां उपचार हेतु चाहे बचाव / रोकथाम हेतु, जब भी उपयोग करें प्रशिक्षित व दक्ष वैद्य के निर्देशन में ही करें अथवा किसी प्रमाणित व उच्च स्तरीय कंपनी के उत्पाद प्रयोग में लें।
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(स). स्वस्थ जीवनशैली :-
- जल्दी सोएं व जल्दी उठें। नींद पूरी लें।
- आधा से एक घंटा कसरत, योग, ध्यान आदि नियमित करें।
- स्वस्थ आहार लें जिसमें प्रोटीन, खनिज लवण, साबुत अनाज, फल, सलाद, कम वसा के डेयरी उत्पाद, ओमेगा 3 फैटी एसिड अधिक हो तथा नमक, खराब वसा व कोलेस्ट्रॉल कम हो। पैकेज्ड फूड, बेकरी उत्पाद, फास्ट फूड से बचें क्योंकि इनमें ट्राँस फेट अधिक होते हैं जो हृदय रोगों को बढावा देते हैं।
- वजन नियंत्रित करें। 10% वजन भी कम हो जाए तो बीपी, मधुमेह का खतरा कम हो जाता है।
- धूम्रपान, तम्बाकू, ड्रग्स व अधिक मदिरापान बंद करें। इनको छोड़ते ही लाभ मिलना शुरू हो जाता है।
- नियमित स्वास्थ्य जाँच करवाएं।
- 30+ उम्र के बाद वर्ष में दो बार हृदय की सर्विस हेतु आयुर्वेदिक उत्पाद अवश्य उपयोग में लें।
6. रक्त चाप (Blood pressure)
- Blood pressure definition - रक्त वाहिकाओं की दीवारों पर बहते हुए रक्त द्वारा डाला गया दबाव रक्त चाप या ब्लडप्रेशर (बीपी) कहलाता है।
- ब्लडप्रेशर (बीपी) व इससे होने वाली तकलीफों से भारत में सालाना 16 लाख से अधिक मौतें होती है।
- हृदय संकुचित होकर शरीर की तरफ जिस प्रेशर से रक्त को छोड़ता है उसे सिस्टोलिक बीपी कहते हैं एवं स्वयं फैल कर जिस प्रेशर से रक्त भरता है उसे डायस्टोलिक बीपी कहते हैं।
- Blood pressure normal - सामान्य स्वस्थ बीपी (नोर्मोटेन्शन) को 120/80 लिखा जाता हैं जिसमें 120 सिस्टोलिक या ऊपरी बीपी तथा 80 डायस्टोलिक या निचला बीपी कहा जाता है।
- Blood pressure levels - ऊपरी बीपी 100-139 व निचला बीपी 60-89 सामान्य माना जाता है, इनसे ज्यादा रहने पर हाई बीपी या हाईपरटेन्शन कहते हैं।
- 90/60 से कम होने को लो बीपी या हाईपोटेन्शन कहते हैं।
- दोनों तुरन्त हो सकते हैं या लम्बे समय से हो सकते हैं, दीर्घकालीन स्थिति खतरनाक होती है। दीर्घकालीन हाई बीपी अधिक पाया जाता है।
- Blood Pressure by age and blood pressure by sex - बी.पी. महिलाओ में पुरुषों की तुलना में कम होता है, बच्चों में व्यस्क से कम होता है, कद व आयु बढने पर बढता है।
- चिकित्सकों द्वारा बीपी नापने के यंत्र को रक्तचापमापी या Sphygmomanometer कहते है।
- घर पर बीपी नापने के यंत्र को बीपी मॉनिटर या बीपी मशीन कहते हैं।
- हदय से निकले रक्त की मात्रा, रक्त बहाव में बाधा व धमनियों का लचीलापन आदि ब्लडप्रेशर को निर्धारित करते है।
(क). उच्च रक्त चाप (High BP):-
धमनियों में थक्का बनने, दीवारों का कड़ा होने, कोलेस्ट्रॉल जमने से दीवारों का मोटा होने पर धमनियों में रक्त प्रवाह कम हो जाता है फलस्वरूप हृदय अधिक प्रेशर से रक्त परिवहन करता है।
हाई बीपी (blood pressure high) के कारण:-
- आनुवांशिक।
- जीवन शैली में बदलाव जैसे आहार में नमक, तेल-घी, अनाज, माँस -अण्डे की अधिकता, परिश्रम की कमी व मोटापा।
- धूम्रपान, तम्बाकू व शराब।
उच्च रक्तचाप के लक्षण (blood pressure high symptoms - bp badhne ke lakshan) :-
- शुरुआत में पता नहीं लगता है, इसलिये इसे silent killer भी कहते है।
- इसका सर्वाधिक असर दिल (हृदयाघात), दिमाग (ब्रेन हैमरेज व लकवा), गुर्दे व आँखों के रेटिना पर पड़ता है।
- अचानक धुंधला दिखाई देना, आँखों के सामने अँधेरा छाना या चिनगारियां दिखना।
- धड़कन बढना, साँस लेने में तकलीफ़, सीने में दर्द, बैचेनी, उल्टी या जी मचलाना, पसीना आना।
- सिर दर्द, भ्रम, बेहोशी, थकान।
उच्च रक्तचाप (हाई बीपी या हाइपरटेंशन) से क्या समस्या हो सकती है?
उच्च रक्तचाप से -
- रक्त वाहिकाओं पर अधिक भार पड़ता है, उनकी दीवारों में छेद हो सकते हैं तथा आंतरिक रक्तस्राव हो सकता है।
- मस्तिष्क में स्ट्रोक (मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में छेद व आंतरिक रक्तस्राव) होने का खतरा बढ़ जाता है।
- मायोकार्डियल वर्कलोड बढ़ता है, शरीर में पर्याप्त रक्त प्रवाह बनाए रखने के लिए हृदय को अधिक मेहनत करनी पड़ती है।
- इस्केमिक हृदय रोग (आईएचडी - Ischemic Heart Disease), दिल का दौरा (मायोकार्डियल इंफार्क्शन) व एनजाइना का खतरा बढ़ जाता है।
इसके विपरीत, सामान्य रक्तचाप वाले लोगों में इस्केमिक हृदय रोग, मायोकार्डियल रोधगलन, एनजाइना एवं स्ट्रोक का जोखिम कम होता है।
हाई बीपी का उपचार:-
जीवन पर्यन्त एलोपैथिक दवाएं या कुछ माह अच्छे आयुर्वेदिक उत्पाद व स्वस्थ जीवन शैली।
(बेहतरीन उत्पाद प्राप्त करने के लिये कमेंट बॉक्स में लिखें व विशेष छूट पाएं।)
हाई बीपी से बचाव कैसे करें? (ब्लड प्रेशर को जड़ से खत्म करने का उपाय)
- नियमित जाँच, 40+ उम्र के बाद प्रत्येक 6 माह पर।
- वजन कम करना।
- संतुलित आहार - नमक, तेल-घी, अनाज व माँसाहार कम करना।
- फलाहार - चुकन्दर (250 ग्राम) - धमनियों को आराम देता है। पाइनएप्पल जूस (पोटैशियम का स्रोत - HYPERTENTION कम करता है)। मुलेठी की चाय (कोर्टिसोल व एड्रेनालाईन की कार्यप्रणाली को नियंत्रित करती है)।
- Blood pressure exercise - नियमित कसरत (आधा घंटा रोजाना), साइकिलिंग (मध्यम से तेज गति - 40 मिनट), रस्सी-कूद (30 मिनट) अथवा नृत्य।
- पैदल चलना व अधिकाधिक शारीरिक श्रम करना।
- योग (सेतुबंध आसन) व ध्यान (MEDITATION)।
Tricks to lower blood pressure instantly -
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(ख). अल्प रक्त चाप (Low BP):-
बीपी के 90/60 से कम होने व लक्षणों के प्रकट होने पर ही लो बीपी (blood pressure low) कहा जाता है।
लो बीपी के लक्षण (blood pressure low symptoms) :-
चक्कर आना व बेहोशी (मस्तिष्क को पर्याप्त रक्त नहीं मिलता है), थकान, ध्यान टूटना, त्वचा ठंडी व रुखी, सांसों कि गति बदलना आदि।
कारण:-
- आनुवांशिक।
- शरीर में तरल पदार्थों की कमी - रक्त स्त्राव से, बैक्टीरियल इन्फेक्शन से, अधिक पसीना आने से व कम तरल पीने से आदि।
- बीपी कम करने वाली एलोपैथिक दवाओं के साईड इफैक्ट या उनकी अधिक खुराक लेने से।
उपचार:- (BP low ho to kya kare)
- एलोपैथी में कोई दवा नहीं होती केवल फ्ल्यूड चढाये जाते हैं तथा नमक , नींबू पानी आदि तरल पदार्थ पीने की सलाह दी जाती है।
- गाजर खाएं व जूस पियें।
- आयुर्वेद में इसके उपचार व नियंत्रण हेतु औषधियां होती है। (आप चाहें तो हमसे संपर्क कर सकते हैं, कमेंट लिख सकते हैं व विशेष छूट प्राप्त कर सकते हैं।)
- योग (मत्स्यासन) व ध्यान।
- पैदल चलना (मध्यम गति की वॉक - 30-40 मिनट रोजाना)।
बीपी नियंत्रित रखने के लिए क्या सावधानियां रखे?
- अपने डॉक्टर से रक्तचाप की जाँच कराएं, उनका सहयोग करें। रक्तचाप को नियंत्रण में रखने के लिए आपको अपने डॉक्टर के साथ मिलकर योजना बनानी चाहिए।
- यदि उच्च रक्तचाप (हाई बीपी) है, तो आहार व जीवनशैली के बारे में अपने डॉक्टर से सलाह लें।
- उच्च रक्तचाप के नियंत्रण के लिए डॉक्टर द्वारा बताई गयी दवा नियमित रूप से लें। यदि कोई नई समस्या या कोई नया लक्षण दिखे, तो अपने डॉक्टर से तुरंत सम्पर्क करें।
- घर पर नियमित रूप से अपना रक्तचाप नापें, रिकॉर्ड करें व योजनानुसार अपने डॉक्टर से साझा करें।
उच्च रक्तचाप को नियंत्रित रखने के लिए आहार कैसा हो? (High BP me kya khaye)
फल व जूस: शरीर में पोटेशियम के उच्च स्तर को नियंत्रित रखने के लिए फलों का जूस, फल (विशेषकर केला), एवं साबुत अनाज का सेवन बढ़ाएं।
मोनोअनसैचुरेटेड वसा: स्वस्थ मोनोअनसैचुरेटेड वसा जैसे जैतून के तेल का सेवन बढ़ाएं।
ओमेगा -3 फैटी एसिड - मछली में पाए जाने वाले ओमेगा -3 फैटी एसिड का सेवन करें, ये उच्च रक्तचाप को कम करने के साथ-साथ कोलेस्ट्रॉल को भी नियंत्रित रखते हैं।
साबुत ओट्स - ओट्स का सेवन उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल व रक्त शर्करा को नियंत्रित रखने में मदद करता है।
विटामिन सी - बीपी को नियंत्रण में रखने के लिए विटामिन सी युक्त फलों (जैसे संतरा) या पूरक उत्पादों का सेवन करें।
7. वसा व कोलेस्ट्रॉल
(१). वसा :-
भोजन में चिकनाई वाले भाग को वसा / चर्बी / Fats / Lipids आदि नामों से जाना जाता है।
- शरीर में संरचनात्मक व चयापचयी दोनों कार्यों में ऊर्जा हेतु भोजन में वसा का होना आवश्यक होता है।
- वसा फैटी एसिड (Fatty acids - FA) से बनती है, दो तरह के FA का भोजन में होना आवश्यक होता है, बाकी सारे शरीर में बनाये जा सकते हैं, ये है - ओमेगा-3 FA व ओमेगा-6 FA।
- प्रकृति में उपलब्धता के आधार पर वसा केदो रुप होते हैं - सिस फैट cis fat व ट्रांस फैट Trans fat. प्राकृतिक रुप में सर्वाधिक सिस फैट ही होती है जबकि ट्रांस फैट प्रकृति में नगण्य होती है।
वसा दो तरह की होती है - संतृप्त व असंतृप्त।
- संतृप्त वसा अधिकतर जंतु शरीर से मिलती है जैसे घी, एवं सामान्य तापमान पर जमी हुई होती है।
- असंतृप्त वसा मुख्यतः पौधों से प्राप्त होती है तथा सामान्य तापमान पर तरल रुप में होती है जैसे बादाम तेल, जैतून तेल, सरसों तेल आदि।
- असंतृप्त वसा जैसे वनस्पति तेल में हाईड्रोजन को जोड़ने पर संतृप्त वसा बन जाती है , परन्तु इसमें ट्रांस फैट की मात्रा बहुत ज्यादा हो जाती है जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है।
आवश्यकता से अधिक वसा ट्राईग्लीसराईड के रुप में जमा कर ली जाती है तथा शरीर को अधिक ऊर्जा की जरुरत के समय यह काम में ली जाती है।
(२). कोलेस्ट्रॉल :-
यह भी वसा का ही रुप है, शरीर की जरुरत का 80% लीवर द्वारा बनाया जाता है शेष 20% भोजन से मिल जाता है। भोजन में 200 mg प्रतिदिन काफी होता है।
भोजन में मात्रा अधिक होने, खराब वसा होने, एलोपैथी दवाएं जैसे HIV व कई अन्य की वजह से शरीर में कोलेस्ट्रॉल बढ जाता है।
कोलेस्ट्रॉल दो प्रकार का होता है - अच्छा या HDL (High Density Lipoprotein ) व बुरा या LDL (Low Density Lipoprotein)।
कोलेस्ट्रॉल (HDL) के महत्वपूर्ण कार्य:-
- कोशिका झिल्ली का निर्माण व रख रखाव।
- सैक्स हार्मोन व स्टीरॉयड हार्मोन का निर्माण।
- तंत्रिकाओं के आवरण का निर्माण।
- भोजन को पचाने वाले पित्त लवण (bile salts) का निर्माण।
- विटामिन डी का निर्माण व कैल्शियम के अवशोषण में सहायक।
इस प्रकार हमने देखा कि शरीर के लिए वसा, कोलेस्ट्रॉल, ट्राईग्लीसराईड सभी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, फिर ये नुकसानदेह कैसे हो जाते हैं ? आइये जानते हैं -
आधुनिक जीवनशैली में अधिकतर बैठ कर काम करने से व शारीरिक श्रम कम होने से शरीर को ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती। ऐसे में अधिक वसा, ट्रांस फैट (वनस्पति घी, बैकरी, पैकेज्ड, फास्ट फूड आदि), कोलेस्ट्रॉल (LDL) व अधिक ट्राईग्लीसराईड धमनियों की दीवार में जमा हो जाते है जिससे धमनियां संकरी हो जाती है, साथ ही दीवार को कठोर भी कर देते हैं फलस्वरूप रक्त के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न होता है जो कि हृदय रोग मुख्यतः दिल का दौरा के कारण बनते हैं।
अन्य रोग जैसे पैरों की धमनियों में अवरोध होने से परिधीय संवहनी रोग, गर्दन व सिर की धमनियों में अवरोध होने से ब्रेन स्ट्रोक, अग्नाशय शोथ (Pancreatitis) व Lipodystrophy भी हो सकते हैं।
मछली तेल, सूरजमुखी तेल, अखरोट, बादाम आदि सुरक्षित वसीय पदार्थ माने जाते हैं।
कोलेस्ट्रॉल का शरीर में बैलेंस बनाए रखने के लिए कमेंट बॉक्स में लिखें , या हमें E-mail करें।
क्या आप या आपका कोई करीबी नजला, एलर्जी, अस्थमा से परेशान है ??
अगले लेख में आपको वो सब कुछ मिलेगा जिससे आप इन समस्याओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं ......
Thanks for valuable information
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